बुधवार, 30 जनवरी 2013

गण"तंत्र" दिवस बनाम "गण"तंत्र दिवस


(इसे लिखा तो मैंने 26 जनवरी को ही था, मगर पोस्ट नहीं कर पाया था.) 

       जो लोग गण"तंत्र" दिवस मनाते हैं, वे बुलेटप्रूफ जैकेट पहनकर बुलेटप्रूफ कारों में बैठकर आते हैं, ब्लैक कैट कमाण्डो के घेरे में सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, रस्मअदायगी करते हुए तिरंगा फहराते हैं और बुलेट्प्रूफ शीशे के पीछे से अपने गण को सम्बोधित करते हैं।
       इसके मुकाबले जो "गण"तंत्र दिवस मनाते हैं, उनके दिलों में सूर्योदय के साथ ही देशभक्ति की भावानायें हिलोरें लेने लगती हैं, उनके होठों पर आशा की मुस्कान थिरकती है, उनकी आँखों में सुनहरे भविष्य की चमक होती है, एक दिन के लिए वे अपने सारे दुःखों को भूल जाते हैं और सोचते हैं, एकदिन देश में खुशहाली जरुर आयेगी।
       ***
       मैं अपने स्वभाव से ही "गण" का पक्षधर रहा हूँ और "तंत्र" का विरोधी। अगर नियति ने प्रसन्न होकर मुझे कभी इस देश को चलाने का अवसर दिया, तो मैं एक ऐसी व्यवस्था कायम कर सकता हूँ, जहाँ नीचे से ऊपर तक गण का ही प्रभुत्व रहेगा। तंत्र या तो कहीं दीखेगा नहीं और दीखेगा भी तो गण के चाकर के रुप में। खुद मुझे गण में से खोजकर निकालना एक मुश्किल काम होगा... ।  

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