सोमवार, 7 जनवरी 2013

नागरिक “कर्तव्य”



कल रात जी टीवी पर किरण बेदी जी ने एक बात कही कि सभी- क्या नागरिक, क्या पुलिस, क्या डॉक्टर, सभी- अपनी-अपनी ‘जिम्मेवारियों’ से मुँह मोड़ने लगे हैं। अपने ‘अधिकारों’ का ध्यान सबको रहता है, मगर अपने ‘कर्तव्यों’ को भूलने लगे हैं। आगे उन्होंने कहा कि ‘मानवाधिकार’ आयोग के स्थान पर ‘मानव अधिकार एवं कर्तव्य’ आयोग बनना चाहिए।
       बात सही है- मैं समर्थन करता हूँ। और जब एक प्रसिद्ध शख्सीयत ने यह बात कही है, तो बात दूर तलक जा भी सकती है।
       मैं यहाँ सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि यह अवधारणा 1995-97 में ही मेरे दिमाग में आ गयी थी। मैंने जिस खुशहाल भारत की कल्पना की है, उसमें निचले स्तर पर भ्रष्टाचार निवारण के लिए थाना स्तर पर 5-5 सतर्कता मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति की बात कही गयी है और मैंने कहा है कि ये सतर्कता मजिस्ट्रेट ही नागरिकों को उनके कर्तव्यों की याद दिलायेंगे, यानि नागरिक कर्तव्य तोड़ने वाले को सजा (चाहे वह ‘लिखित फटकार’ ही क्यों न हो) देंगे।
मगर कब?
       यहीं किरण बेदी जी की बात के साथ मेरे विचार में थोड़ा-सा अन्तर आ जाता है। मेरे अनुसार, राजसत्ता जब अपने नागरिकों को एक स्वच्छ एवं समाजवादी शासन, एक भ्रष्टाचार एवं कदाचार मुक्त पुलिस-प्रशासन, एक त्वरित एवं सस्ती न्यायिक प्रक्रिया उपलब्ध करा देती है, सभी नागरिकों को एक खुशहाल एवं शालीन जीवन जीने का अवसर दे देती है, तब जाकर राजसत्ता को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह नागरिकों को कर्तव्य तोड़ने के लिए सजा दे।
       कृपया अन्यथा न लें- दामिनी काण्ड में जो हुआ, उसमें लोगों ने “इन्सानियत” नहीं दिखाई थी, “मानवता” नहीं दिखाई थी, यह कोई संविधान वर्णित नागरिक कर्तव्य तोड़ने का मामला शायद नहीं था। ...और इन्सानीयत या मानवता का मामला “आध्यात्मिक” मामला है। हम जितना अधिक “भौतिकवादी” होंगे, हमारी इन्सानीयत, हमारी मानवता उतनी ही कम होती जायेगी। आज की राजसत्ताओं के एजेण्डे में न “आध्यात्मिकता” है, न ही नागरिकों की “आध्यात्मिक उन्नति”, इसलिए सारी दुनिया में नैतिक पतन हो रहा है।
       खैर, मेरे घोषणापत्रका घोषणा क्रमांक 3.13 कहता है-
“भविष्य में, (जब भ्रष्टाचार का बोल-बाला कम हो जायेगा और इसे नागरिकों की मौन सहमति मिलनी बन्द हो जायेगी, तब नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले ये सतर्कता मजिस्ट्रेट) नागरिकों को उनके कर्तव्यों की भी याद दिलायेंगे; अर्थात् नागरिक कर्तव्यों को तोड़ने वालों (मसलन, सड़क पर कचरा डालने वाले) को भी इन सतर्कता अदालतों में पेश किया जा सकेगा।”

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