12 जनवरी को- स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर-
अपने आलेख का समापन मैंने इस उद्घोषणा के साथ किया था: ““भारतीयता का पुनर्जागरण”
या “भारत का पुनरुत्थान” एक नये, यानि अब तक अपरिचित, नेतृत्व के द्वारा होगा।”1
आज 23 जनवरी को- नेताजी सुभाष जयन्ती पर-
मैं इसी विन्दु से शुरुआत कर रहा हूँ कि “भारतीयता के पुनर्जागरण” और “भारत के
पुनरुत्थान” के निहितार्थ क्या हैं, यह किस तरह से और कब तक घटित होगा। देखा जाय,
तो ये दोनों घटनायें एक ही सिक्के के दो पहलू हैं- जब भी घटेगी, दोनों घटनायें साथ
ही घटेंगी।
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“भारतीयता के पुनर्जागरण” के लिए सबसे पहले
तो “राष्ट्रमण्डल” (कॉमनवेल्थ) की सदस्यता का परित्याग करना होगा और 15 अगस्त 1947
के “सत्ता-हस्तांतरण समझौते” को रद्दी की टोकरी में फेंकने की “आधिकारिक एवं
वैधानिक” घोषणा करनी होगी। बात दरअसल यह है कि राष्ट्रमण्डल की सदस्यता तथा
सत्ता-हस्तांतरण की शर्तें हमें अँग्रेजों के बनाये संविधान (मत भूलें कि हमारे
संविधान का दो-तिहाई हिस्सा “1935 का अधिनियम” ही है!) तथा अँग्रेजों की बनायी
पुलिस, प्रशासनिक, सैन्य एवं न्यायिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए बाध्य करती है।
यह अधिनियम, ये व्यवस्थायें दुनिया के सबसे बड़े “उपनिवेश” (ब्रिटिश साम्राज्य के
लिए “उपनिवेशों का कोह-ए-नूर”) पर “राज” करने के लिए बनायी गयीं थीं, न कि एक
“स्वतंत्र” देश की व्यवस्था के रुप में इन्हें बनाया गया था। कहने का तात्पर्य,
हमें शुरुआत शून्य से करनी होगी... संविधान सहित सभी व्यवस्थाओं को नये सिरे से
बनाना होगा... भारतीय पृष्ठभूमि पर...
दूसरी बात। विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय
मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन के चंगुल से हमें बाहर निकलना होगा। ध्यान रहे-
ये तीनों ही संस्थायें “संयुक्त राष्ट्र संघ” (यू.एन.ओ.) की अंग नहीं हैं! इनके
साथ हमने जो भी समझौते कर रखे हैं- गुप्त रुप से या खुलकर, उन सबको कचरे की पेटी
में फेंकने की जरुरत है। विश्व बैंक और आई.एम.एफ. से हमने जो कर्ज ले रखे हैं,
उनके बारे में हमें घोषणा करनी होगी- 1. फिलहाल इन कर्जों को चुकाने से हम मना
करते हैं; 2. जब हम विदेशों में जमा भारतीयों के कालेधन को जब्त कर लेंगे, तब इस
कर्ज को चुकाने के बारे में सोच सकते हैं, मगर उसमें भी सिर्फ मूलधन चुकायेंगे-
ब्याज नहीं; 3. कर्ज कब तक चुकायेंगे, कितनी किस्तों में चुकायेंगे- यह हम तय
करेंगे; और 4. आप यह सोचकर इन कर्जों को भूल जाईये कि भारत को उपनिवेश बनाकर इसका
जो शोषण किया गया था, उसी का मुआवजा दिया गया है।
तीसरी बात। टैंक से लेकर युद्धक विमान तक
और मोबाइल से लेकर कम्प्यूटर तक- हर चीज को देश के अन्दर ही बनाने की शुरुआत की
जानी चाहिए। (जब कम्प्यूटर कहा जा रहा है, तो इसका अर्थ हुआ, भारतीय वर्णमालाओं पर
आधारित भारत का अपना ऑपरेटिंग सिस्टम, की’बोर्ड, अपने सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर, अपना
इण्टरनेट इत्यादि- वर्तमान प्रणाली अपनी जगह कायम रहेगी।) इस सम्बन्ध में कुछ
विचारणीय विन्दु ये हैं- 1. चूँकि भारत कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपक,
अन्तर्महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल और सुपर कम्प्यूटर बना चुका है, अतः इस अभियान
में कोई बड़ी बाधा सामने नहीं आनी चाहिए; 2. बाधायें आयीं, तो शून्य से शुरुआत करने
की प्रक्रिया अपनायी जायेगी- जैसे कि विमान निर्माण की शुरुआत ‘गुब्बारा उड़ाने’ से
की जा सकती है; 3. विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में अब तक ‘स्वदेशीकरण’ को जानबूझ
कर नहीं अपनाया जा रहा है कि इससे ‘कमीशनखोरी’ का विकल्प समाप्त हो जाता है; और 4.
जरुरत पड़ने पर दुनियाभर में फैले भरतीय मूल के इंजीनियरों, तकनीशियनों एवं
वैज्ञानिकों के नाम एक पंक्ति के इस आह्वान को जारी किया जा सकता है- “भारत माँ को
उसके होनहार, मेधावी एवं कर्मठ बेटे-बेटियों की जरुरत आन पड़ी है... जो भी, जहाँ
कहीं भी है, माँ सबको घर बुला रही है...”
***
“भारत के पुनरुत्थान” के लिए- 1. सबसे पहले
तो भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट उच्चाधिकारियों, भ्रष्ट पूँजीपतियों तथा माफिया-सरगनाओं
को देश की मुख्यभूमि से बाहर निकाल कर निकोबार के किसी टापू पर उन्हें बसाने की
जरुरत है; 2. शासन, प्रशासन, पुलिस, सेना तथा न्यायपालिका के उच्च एवं सर्वोच्च
पदों पर बैठे लोगों के चरित्र, आचरण एवं कार्यों पर नजर रखने तथा गलती करने पर
उन्हें दण्डित करने के लिए ‘पंच परमेश्वर’ के रुप में एक शक्तिशाली संस्था के गठन
की जरुरत है; 3. निचले स्तर पर भ्रष्टाचार के निवारण के लिए, नागरिकों के अधिकारों
की रक्षा के लिए और नागरिकों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए 5-5
‘सतर्कता-मजिस्ट्रेटों’ की नियुक्ति की जरुरत है, जो ‘पंच परमेश्वर’ के अधीन रहकर
कार्य करें; 4. देश व विदेशों में जमा कालेधन को जब्त कर (उसे सोने में बदलकर)
‘रुपये के मूल्य’ को ऊँचा उठाने की जरुरत है; 5. न्यूनतम व अधिकतम
वेतन-भत्तों-सुविधाओं (सरकारी या निजी) के बीच 1:5, या 1:7 या फिर 1:15 के अनुपात
को तय किये जाने की जरुरत है; 6. भूमि का- खासकर, कृषिभूमि का- नये सिरे से एवं
आधुनिक तकनीक के साथ सर्वेक्षण, वर्गीकरण, चकबन्दी एवं पुनर्वितरण की जरुरत है; 7.
जिस किसी उपभोक्ता वस्तु का निर्माण/उत्पादन कुटीर एवं लघु उद्योगों में सम्भव है,
उनका वृहत उद्योगों/औद्योगिक घरानों द्वारा निर्माण/उत्पादन तथा उनका आयात बन्द
किये जाने की जरुरत है; 8. प्रत्येक 100 की आबादी पर कम-से-कम 1 शिक्षाकर्मी, 1
स्वास्थ्यकर्मी तथा 1 सुरक्षाकर्मी की नियुक्ति की जरुरत है; 9. जहाँ तक
‘प्रशासनिक अधिकारियों’ की नियुक्ति की बात है, इसके लिए उन्हीं युवाओं का चयन
किये जाने की जरुरत है, जो स्नातक (किसी भी श्रेणी से) होने के साथ-साथ सामाजिक
कार्यों, सांस्कृतिक गतिविधियों और साहसिक अभियानों में भाग लेते रहे हों; 10. छोटे
किसानों, मजदूरों, गरीबों के लिए अलग से एक ‘राष्ट्रीय बैंक’ के गठन की जरुरत है,
जो मुनाफा कमाने के स्थान पर इन लोगों के सामाजार्थिक उत्थान के लिए कार्य करे; 11.
सभी छोटे किसानों-मजदूरों को ‘विश्वकर्मा सेना’ के नाम से एक “आरक्षित” सेना के
रुप में संगठित करने तथा जनता के पैसे से होने वाले प्रत्येक निर्माण कार्य को इसी
सेना के माध्यम से करवाये जाने की जरुरत है; 12. विदेशी/बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को
किसी भारतीय कम्पनी में 33% तक पूँजीनिवेश करने तथा मुनाफे का इतना ही हिस्सा वसूल
करने देने की जरुरत है- उन्हें स्वतंत्र रुप से देश में व्यवसाय नहीं करने देना
चाहिए; 13. आयात-निर्यात के मामले में अमीर देशों के साथ शत-प्रतिशत बराबरी रखने
की जरुरत है- अगर कोई अमीर देश भारत से एक रुपये का सामान मँगवाता है, तो भारत को
भी वहाँ से एक ही रुपये का सामान मँगवाना चाहिए; 14. आम जनता के लिए ‘आवश्यक’
वस्तुओं/सेवाओं पर से सभी प्रकार के करों को हटाने, ‘आरामदायक’ वस्तुओं/सेवाओं पर
कर कम रखने तथा इनकी भरपाई के लिए (“आम जनता के लिए-“) ‘विलासिता’ की
वस्तुओं/सेवाओं पर कर बढ़ाने की जरुरत है; 15. इसी प्रकार, आम जनता के लिए ‘आवश्यक’
वस्तुओं की आयात पर अगर 5% का शुल्क रखा जाता है, तो ‘आरामदायक’ वस्तुओं की आयात
पर 50% तथ ‘विलासिता’ की वस्तुओं की आयात पर 100% शुल्क रखे जाने की जरुरत है; 16.
प्रदूषित शहरों में मोटर गाड़ियों के पंजीकरण/स्थानान्तरण तथा नये उद्योग-धन्धों के
निर्माण पर पाबन्दी लगाने, भूमि के 33% हिस्से को हरियाली से ढकने तथा नदियों पर
बने बाँधों को तोड़ते हुए उन्हें स्वाभाविक रुप से बहने देने की जरुरत है; 17. देशभर
में- खासकर, नगरों/महानगरों में- ‘मकड़जाल’ किस्म के "फ्लाइओवर साइकिल
ट्रैकों” के निर्माण की जरुरत है;
...इस प्रकार की सैकड़ों बातें हैं, जिन्हें अपनाये जाने की जरुरत
है। इनका बाकायदे एक संकलन भी मैंने तैयार कर रखा है।2
***
2014 में जो आम चुनाव होने हैं (कुछ का मानना है कि इसी साल ये चुनाव
होंगे), उसके लिए देश के सभी राजनीतिक दलों ने कमर कसनी शुरु कर दी है। आप उनसे
पूछकर देख सकते हैं- कोई भी दल उपर्युक्त किस्म की बातों को अपने चुनावी
"घोषणापत्र" में शामिल करने के लिए राजी नहीं होगा। वे देश-समाज को
जाति, धर्म, भाषा, प्रान्तीयता, क्षेत्रीयता इत्यादि में बाँटने वाले मुद्दों,
घिसे-पिटे भावनात्मक नारों, सड़े-गले सब्जबागी वायदों के साथ चुनावी समर में
उतरेंगे; रातों-रात अरबपति बनने वालों, दर्जनों संगीन अपराधों के अभियुक्तों को
अपना प्रत्याशी बनायेंगे; और जनता भी इनकी रैलियों में इस कदर उमड़ पड़ेगी कि मानो
इन नेता-नेत्रियों, अभिनेता-अभिनेत्रियों की शक्ल देखने के बाद उनका मानव जन्म
सार्थक हो जायेगा!
चुनावों के बाद नवनिर्वाचित सांसदों की मण्डियाँ सजेंगी- खुले-आम
खरीद-फरोख्त होगी और फिर भानुमति के कुनबे-जैसी एक सरकार बनेगी, जिसकी कमान या तो
नागनाथ या फिर साँपनाथ के हाथों में होगी। संसद में पहुँचने वाले दलप्रतिनिधि
(इन्हें जनप्रतिनिधि कहने में मुझे आपत्ति है, क्योंकि इन्हें दल वाले टिकट देते
हैं, इन्हें जनता नहीं चुनती) अगले पाँच वर्षों तक लाट साहब के तरह रहेंगे और
पूँजीपतियों-उद्योगपतियों, बहुराष्ट्रीय निगमों, अमीर देशों, वर्ल्ड
बैंक-आईएमएफ-डब्ल्यूटीओ के दलाल बनकर देश के लिए नीतियाँ बनायेंगे.... जैसा कि अब
तक होता आया है।
आगे भी 2019 में यही सब दुहराया जायेगा, फिर 2024 में भी यही सब
कुछ दुहराया जायेगा और यह प्रक्रिया चलती रहेगी... चलती रहेगी... जब तक कि देशवासी
जाग न जायें...
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सवाल है- देशवासियों के "जागने" से यहाँ क्या मतलब है?
अगर ये राजनीतिक दल देश का भला नहीं करने वाले हैं, तो कौन करेगा? कैसे करेगा?
इन सवालों का जवाब खुद देने के बजाय मैं देश के दो बड़े
अर्थशास्त्रियों के कथनों को यहाँ उद्धृत करना चाहूँगा।
पहला कथन डॉ. (स्व.) अरूण घोष का है, जिसे पहले भी कई बार मैं
उद्धृत कर चुका हूँ। इसे मैंने 30 जुलाई 1998 के दैनिक 'जनसत्ता' में छपे उनके
साक्षात्कार से नोट किया था:
“मैं तो केवल सर्वनाश देख सकता हूँ। भविष्य में क्या होगा,
इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता। पर समाज
विचलित हो रहा है। जनता की नाराजगी बढ़ रही है। मेरा मानना है कि संसद वर्तमान स्थिति को रोकने की हालत में नहीं है। सभी पार्टियाँ इन नीतियों (उदारीकरण) की समर्थक हैं, और सांसदों में सड़क पर आने का दम नहीं है।
“मुझे तो लगता है कि एक लाख लोग अगर संसद को घेर
लें, तो
शायद कुछ हो।”
दूसरा कथन डॉ. भरत झुनझुनवाला का है- कल ही, यानि 22 जनवरी को मैंने
इसे दैनिक 'प्रभात खबर' में छपे उनके आलेख 'क्रोनी पूँजीवाद और विकास' से नोट
किया:
"प्रसन्नता की बात है कि क्रोनी पूँजीवाद (चहेतों को लाभ
पहुँचाने वाला यानि लंगोटिया पूँजीवाद) ज्यादा समय तक टिकता नहीं। अफ्रीकी देश
ट्यूनीशिया में वहाँ के राष्ट्रपति बेन अली के परिवार के लिए सभी व्यापारिक अवसर
आरक्षित थे। देश की टेलीफोन एवं दूसरी प्रमुख कम्पनियाँ इसी परिवार के द्वारा
चलायी जाती थी। यहीं अफ्रीकी क्रान्ति का शुभारम्भ हुआ। यानि क्रोनी पूँजीवाद से
निबटने का रास्ता क्रान्ति का है, जिसे अन्ना हजारे, केजरीवाल और रामदेव बढ़ा रहे
हैं। सरकार के सामने विकल्प है कि क्रोनी पूँजीवाद को स्वयं त्याग दे या फिर
क्रान्ति का सामना करे।"
लगता तो नहीं है कि इन दोनों कथनों की व्याख्या की जरुरत है।
***
अब सवाल है कि क्रान्ति करेगा कौन?
मैंने अनुमान लगाया है कि अगर देश के 1% लोग- यानि लगभग एक-सवा
करोड़ लोग- आन्दोलित हों जायें और इन्हें देश के 3 या 4 प्रतिशत लोगों- यानि 3 से 5
करोड़ लोगों का- "नैतिक समर्थन" प्राप्त हो, तो देश में क्रान्ति हो सकती
है।3
अगर देश के भूतपूर्व सैनिक इस क्रान्ति में "अग्रिम
पंक्ति" की भूमिका निभायें, ताकि पुलिस एवं अर्द्धसैन्य बलों के जवान (?) इन
पर लाठी उठाने की हिम्मत न कर सकें और भारतीय सेना का एक "सॉफ्ट कॉर्नर"
भी इस क्रान्ति के प्रति बन जाये, तो फिर आन्दोलित होने के लिए दशमलव एक प्रतिशत-
यानि 10-12 लाख- लोगों की संख्या ही पर्याप्त होगी!4
यहाँ एक बात को रेखांकित करना उचित होगा कि भारतीय युवाओं ने 2011
के अगस्त में और पिछले साल दिसम्बर में यह साबित कर दिया है कि क्रान्ति करने की
क्षमता उनमें मौजूद है!
सवाल है- क्रान्ति के बाद क्या?
जवाब है- बर्फ पिघलने के बाद पानी अपना रास्ता खोज ही लेता है। इस
सम्बन्ध में मैं दैनिक 'प्रभात खबर' से ही बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गजेन्द्र प्रसाद
हिमांशु जी के एक आलेख का अन्तिम पाराग्राफ यहाँ उद्धृत करना चाहूँगा, जो 3 जनवरी
को प्रकाशित हुआ था-
“हालाँकि लोग अक्सर चर्चा करते हैं कि जब देश में
अधिकतर नेता भ्रष्ट हैं और अधिकतर पार्टियाँ प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में तब्दील
हो चुकी हैं, तो
जनता के पास विकल्प क्या होगा? विकल्पहीनता का प्रश्न भारतीय
मानस को मथता रहता है। लेकिन एक सच यह भी है कि प्रत्येक का विकल्प हमेशा ही
मौजूद रहता है,
भले ही अवाम उसे पहचानने में देरी करे। कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक
भौतिकवाद की परिभाषा में लिखा है कि ‘आदमी कुछ करे या नहीं करे,
प्रकृति चुपचाप बैठी नहीं रहती है। वह हमेशा घटनाओं के संघर्ष से
कुछ न कुछ नया करती रहती है।’ मार्क्स की यह परिभाषा वैसे दम्भी दलों और नेताओं के लिए
एक सबक है, जो समझते हैं कि उनका कोई विकल्प नहीं है! प्रचंड
वेग से बहती धारा अपना रास्ता स्वयं खोज लेती है। इसी प्रकार भारतीय राजनीति की
कोई अनजान धारा सभी दम्भी विकल्पों को ध्वस्त कर दे, तो कोई आश्चर्य नहीं। और यही एक सच्चे लोकतंत्र की
विशेषता भी है।”
***
अगर क्रान्ति कोई होनी ही है, तो उसे 2014 के आम चुनाव के दौरान ही
हो जानी चाहिए। इसके लिए देश के 5 करोड़ लोगों को "लामबन्द" करने में पूर्व
सेनाध्यक्ष जेनरल वी.के. सिंह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे अन्ना हजारे और
स्वामी रामदेव दोनों के सम्पर्क में हैं और देश का युवा उनके आह्वान पर बाहर आ
सकता है; साथ ही, सेना के भी एक बड़े हिस्से का "सॉफ्ट कॉर्नर" उनके
प्रति बना रहेगा।
अगर 2014 में कुछ न हुआ, तो दो-ढाई साल अगली सरकार का काम-काज देख
लिया जाय, फिर 2017 में एक फूलप्रूफ योजना बनायी जाय।
अन्त में, नेताजी सुभाष के इस कथन के साथ मैं अपनी बात समाप्त करने
की अनुमति चाहूँगा-
"एक सच्चा क्रान्तिकारी हमेशा अच्छे की उम्मीद रखता है, मगर बुरे
के लिए तैयार रहता है।"
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स्वामीजी और नेताजी को शत शत नमन ......
जवाब देंहटाएं"मृतक ने तुमसे कुछ नहीं लिया | वह अपने लिए कुछ नहीं चाहता था | उसने अपने को देश को समर्पित कर दिया और स्वयं विलुप्तता मे चला गया |"
जवाब देंहटाएं- महाकाल
(श्री Anuj Dhar जी की पुस्तक,"मृत्यु से वापसी - नेता जी का रहस्य" से लिए गए कुछ अंश)
"महाकाल" को ११६ वीं जयंती पर हम सब का सादर नमन ||
आज़ाद हिन्द ज़िंदाबाद ... नेता जी ज़िंदाबाद ||
जय हिन्द !!!
वो जो स्वयं विलुप्तता मे चला गया - ब्लॉग बुलेटिन नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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