संयोग देखिये- कल ही
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व डीन डॉ. अनिल सद्गोपाल एक लेख में लिखते हैं-
“हम उस मोड़ पर खड़े
हैं, जब केन्द्र व राज्य सरकारें आम जनता के लिए बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था स्थापित
करने की संवैधानिक जवाबदेही से तेजी से पल्ला झाड़ रही हैं।”
“भारतीय राजसत्ता ने
विश्व बैंक के इस खतरनाक सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया है कि उच्च शिक्षा एक निजी
उपभोग की वस्तु है, जिसकी कीमत हर उपभोक्ता को चुकानी ही पड़ेगी। संविधान-विरोधी
इस सिद्धान्त के सहारे उच्च शिक्षा को एक बिकाऊ माल में तब्दील किया जा रहा है।”
“भारतीय राजसत्ता ने ब्रिटिश
साम्राज्यवाद के खिलाफ लम्बी लड़ाई से बतौर विरासत मिली अनूठी शैक्षिक दृष्टि को (टिप्पणी..हालांकि
मैं इस वाक्यांश को ठीक से ग्रहण नहीं कर पा रहा हूँ..) दरकिनार करके नवउदारवादी
पूँजी व वैश्विक बाजार की तर्ज पर शिक्षा व्यवस्था चलाने का फैसला कर लिया है।
नवउदारवादी नीति का मकसद सरकारी स्कूली व उच्च शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता में
इतनी गिरावट लाना रहा है, कि उसकी विश्वसनीयता ही खत्म हो जाये। तभी तो निजी
स्कूलों, कॉलेजों, व विश्वविद्यालयों का बाजार फले-फूलेगा।”
...और आज के अखबार की एक खबर घोषणा
करती है- “80 फीसदी बढ़ेगी आइआइटी की फीस”
मतलब समझ लीजिये।
जब राजनेता संविधान की धज्जियाँ
उड़ाते हुए नीतियाँ बनायें, तो हम चुप रहें; और अगर हमने संविधान की किसी कमी को उजागर
कर दी, तो हम राष्ट्रद्रोही हो गये!
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खैर, इसके मुकाबले जरा
मेरी “शिक्षा नीति” को देख लिया जाय-
27. शिक्षा: ढाँचा
27.1 राष्ट्रीय सरकार की ओर से जो शिक्षा व्यवस्था लागू होगी, वह चार स्तरीय होगी- क) पहली से छठी तक विद्यालयों में; ख) सातवीं से बारहवीं तक उच्च विद्यालयों में; ग) स्नातक एवं स्नातकोत्तर की शिक्षा महाविद्यालयों में और घ) इससे ऊँची शिक्षा- शोध आदि, विश्वविद्यालयों में।
27.2 प्रत्येक जिले/महानगर में एक 'गुरुकुल' की स्थापना की जाएगी, जिसके कैम्पस में एक विश्वविद्यालय तथा एक-एक कृषि, चिकित्सा, अभियांत्रिकी,तकनीकी, ललित कला, क़ानून इत्यादि विशेष विषयों के महाविद्यालय मौजूद होंगे।
27.3 शैक्षणिक परीक्षाओं में विद्यार्थियों को अनुत्तीर्ण नही किया जाएगा, बल्कि प्राप्तांक के आधार पर इन ग्रेडों के साथ सभी को उत्तीर्ण किया जाएगा: निम्न- 10 प्रतिशत से कम, निम्न'श्री- 10 से 20 प्रतिशत, औसत- 20 से 30 प्रतिशत, औसत'श्री- 30 से 40 प्रतिशत, मध्यम- 40 से 50 प्रतिशत, मध्यम'श्री- 50 से 60 प्रतिशत, उत्तम- 60 से 70 प्रतिशत,उत्तम'श्री- 70 से 80 प्रतिशत, मेधा- 80 से 90 प्रतिशत, मेधा'श्री- 90 से 100 प्रतिशत।
27.4 निम्न आयवर्ग के विद्यार्थी शिक्षा, परीक्षा पाठ्य पुस्तक तथा यूनिफ़ॉर्म के खर्च का 5 प्रतिशत, मध्यम आयवर्ग वाले 50 प्रतिशत और उच्च आयवर्ग वाले शत-प्रतिशत शुल्क वहन करेंगे।
27.5 निम्न आयवर्ग तथा देश के पिछड़े क्षेत्रों के विद्यार्थियों/परीक्षार्थियों को इस देश में आयोजित किसी भी परीक्षा में दस-दस प्रतिशत अंकों का ग्रेस दिया जाएगा। (अगर एक विद्यार्थी निम्न आयवर्ग से भी है और वह देश के पिछड़े क्षेत्र का भी निवासी है, तो स्वाभाविक रूप से उसे कुल 20 प्रतिशत अंकों का ग्रेस मिलेगा।) (आशा की जाती है कि यह व्यवस्था धीरे-धीरे आरक्षण की आवश्यकता को समाप्त कर देगी.)
27.6 देशाटन को शिक्षा का आवश्यक अंग बनाया जाएगा और इसके लिए 'भारत भ्रमण' रेलवे ट्रैक तथा साइकिल ट्रैक का निर्माण किया जाएगा। (41.4 और 42.6)
27.7 देश-विदेश के विद्यार्थियों को भारतीय इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, कला, दर्शन,ज्ञान, विज्ञान, भाषा इत्यादि पर उच्च शिक्षा, शोध आदि का अवसर प्रदान करने के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी, जहाँ से दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओँ में 'भारतीयता' का प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा।
27.8 शैक्षणिक वर्ष विक्रमी संवत्सर से (अप्रैल में) आरम्भ होंगे; शिक्षण सामग्री को दो हिस्सों में बांटकर 60 प्रतिशत सामग्री की 'पूर्वार्द्ध' परीक्षा शरत काल में दशहरा-दिवाली से पहले और बाकी बची 40 प्रतिशत शिक्षण सामग्री की'उत्तरार्द्ध' परीक्षा बसंत काल में होली से पहले ली जाएगी।
27.9 'पूर्वार्द्ध' परीक्षा के बाद 40 दिनों की और 'उत्तरार्द्ध' परीक्षा के बाद 20 दिनों की छुट्टी दी जाएगी; इसके अलावे विद्यालय प्रशासन के हाथों में ख़राब मौसम (अत्यधिक शीत, ग्रीष्म या वर्षा) और आकस्मिक मौकों के लिए कुल 40 दिनों की छुट्टियां रहेंगी। (अगर रविवार की छुट्टियों को भी इनमे जोड़ दिया जाय, तो भी वर्ष में 200 दिनों की पढ़ाई सुनिश्चित की जा सकती है।)
27.10 शिक्षा को 'भारतीय विचारों वाले' शिक्षाविदों तथा प्रबुद्ध लेखकों/कवियों की एक स्वायत्त राष्ट्रीय शिक्षा-दीक्षा समिति के अधीन रखा जाएगा।
27.11 यह समिति शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करने के अलावे- क) एक भारतीय भाषा के उत्कृष्ट साहित्य का अन्यान्य भारतीय भाषाओँ में अनुवाद की व्यवस्था करेगी और ख) स्थानीय किशोर/युवा संघों द्वारा संचालित पुस्तकालयों को रियायती दरों पर पुस्तकें उपलब्ध कराएगी।
27.12 शैक्षणिक संस्थाओं में विद्यार्थियों के पाँच समूह (हाऊस) होंगे- क्षितिज, जल,पावक, गगन और समीर।
27.13 स्वतंत्र रूप से एक मध्यान्ह भोजन विभाग का गठन किया जायेगा, जो शैक्षणिक संस्थाओं में भोजनालय तथा भोजन की व्यवस्था करेगा- इसमें शिक्षकों व छात्रों की उपस्थिति सिर्फ ‘मेस मेम्बर’ के रुप में रहेगी। (जाहिर है, शैक्षणिक सत्र की शुरुआत व अन्त में सहभोज हुआ करेंगे।)
28. शिक्षा: सामग्री
28.1 जिन भारतीय भाषाओं की अपनी सुगठित लिपियाँ हैं, उन सबको शिक्षा-परीक्षा का माध्यम बनाया जाएगा- इसके लिए सभी पाठ्यक्रमों का इन भाषाओँ में अनुवाद कराया जाएगा।
28.2 एक सम्पूर्ण भारतीय कम्प्यूटर प्रणाली विकसित की जाएगी, जिसके ऑपरेटिंग सिस्टम, प्रोग्राम, की-बोर्ड इत्यादि भारतीय भाषाओँ/लिपियों पर आधारित होंगे; साथ ही, इन कम्प्यूटरों को "त्रिनेत्र" (भारतीय इण्टरनेट) के माध्यम से जोड़कर रखा जाएगा।
28.3 अंग्रेजी भाषा/रोमन लिपि को अंतर्राष्ट्रीय भाषा/लिपि तथा एक साहित्य के रूप में पढ़ाया जाएगा, मगर इसे शिक्षा-परीक्षा का माध्यम नही बनने दिया जाएगा।
28.4 उच्च विद्यालयों में (यानि 7 वीं से 12 वीं कक्षा तक) यूनिफ़ॉर्म और सैन्य शिक्षा को आवश्यक बनाया जाएगा- हालाँकि सैन्य शिक्षा कड़ाई से नही दी जाएगी।
28.5 उच्च विद्यालयों में ही कुछ अतिरिक्त विषयों की पुस्तकें लागू की जाएँगी,जिनकी परीक्षा नही ली जाएगी; उन्हें इस प्रकार पढ़ाया जाएगा- 7 वीं में ललित कला, 8 वीं में योगासन एवं प्राकृतिक चिकित्सा, 9 वीं में प्रमुख भारतीय भाषाओँ का व्यवहारिक ज्ञान, 10 वीं में पर्यावरण संरक्षण, 11 वीं में यौन शिक्षा और 12 वीं में दुनिया भर के विषयों पर नवीनतम एवं आधुनिकतम जानकारी देने वाली एक वार्षिक ‘चयनिका’ ('डाइजेस्ट')।
28.6 भारतीय पृष्ठ भूमि पर एवं भारतीय परिवेश में भारतीय दृष्टिकोण से सहज पाठ्यक्रमों की रचना की जाएगी और छोटे बच्चों पर बस्ते का बोझ कम रखा जाएगा।
28.7 विद्यालयों एवं उच्च विद्यालयों में संस्कृत को मुख्य रूप से 'पढ़ कर समझने' की शिक्षा दी जाएगी, इसके व्याकरण और इसमे रचना की शिक्षा महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में दी जाएगी।
28.8 निजी संस्थानों, ग्राम पंचायतों, नगरसभाओं तथा महानगर परिषदों को 12 वीं तक और राज्य सरकारों को स्नातकोत्तर स्तर तक की समान्तर शिक्षा व्यवस्था कायम करने की छूट होगी; इसी प्रकार, शिशुओं के लिए शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेवारी स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं को इस सलाह के साथ सौंपी जाएगी की वे यह शिक्षा बच्चों को उनकी मातृभाषा में दें।
28.9 प्रमुख भारतीय भाषाओँ का न्यूनतम व्यवहारिक ज्ञान देने वाली पुस्तिका (28.5) को बाजार में भी उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि आम लोग भी इसका लाभ उठा सकें; इसके अलावे, अखिल भारतीय स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में इस ज्ञान को जांचने के लिए एक प्रश्नपत्र रखा जाएगा।
28.10 राष्ट्रीय सरकार द्वारा जो भारतीय कम्प्यूटर बनाये जायेंगे, उनके पाँच मॉडल होंगे- बालक, किशोर, युवा, नागरिक और राजकीय; जाहिर है, इन पाँचों प्रकार को इण्टरनेट सुविधा देने के लिए “त्रिनेत्र” के पाँच अलग-अलग सर्वर होंगे। (विद्यार्थियों को ये कम्प्यूटर नाममात्र की कीमत पर उपलब्ध कराये जायेंगे।)
(ये दो अध्याय मेरे घोषणापत्र के हैं.)
प्रभावी !!!
जवाब देंहटाएंजारी रहें,
शुभकामना !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज)