गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

जनाक्रोश’ दिसम्बर’12: तीन निष्कर्ष



घटना- 16 दिसम्बर 2012 की रात राजधानी दिल्ली में एक चलती बस में 6 दरिन्दे मिलकर एक युवती के साथ जो वहशियाना हरकत करते हैं, उसे दुनिया की सबसे दर्दनाक, शर्मनाक और खौफनाक घटनाओं में से एक गिना जाना चाहिए।
निष्कर्ष- हम हिन्दुस्तानियों के- बल्कि हम इन्सानों के- नैतिक एवं चारित्रिक पतन की यह पराकाष्ठा है। अब हमें अपने तथा अपनी आने वाली नस्लों के नैतिक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के प्रति सचेत हो जाना चाहिए।
नोट- आज की सरकारें, आज के राजनेता सिर्फ और सिर्फ “विकास दर” को लेकर चिन्तित रहते हैं; उन्हें देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक वातावरण की कोई परवाह नहीं है। देश की राजनीतिक सोच में बदलाव लाने की जरुरत है- क्योंकि यहीं से सारे बदलाव के रास्ते निकलते हैं।  
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घटना- इस शर्मनाक घटना के बाद हफ्ते भर तक देश का जनमानस उबलता रहता है, मगर हमारे प्रधानमंत्री के मुँह से अफसोस का एक बोल नहीं फूटता है- भरोसा दिलाना तो दूर की बात है। जब जनप्रदर्शन उग्र रुप धारण करता है, तब वे बोलते हैं- वह भी जगहँसाई वाले अन्दाज में।
निष्कर्ष- वर्तमान प्रधानमंत्री को चूँकि जनता ने नहीं चुना है, इसलिए जनता से संवाद करना वे जरुरी नहीं समझते हैं। समय आ गया है कि हम सीधे नागरिकों द्वारा 5 वर्षों के लिए प्रधानमंत्री के चयन के बारे में सोचें- चाहे इसके लिए संविधान ही क्यों न बदलना पड़े।
नोट- संविधान का दो-तिहाई (यानि 70 फीसदी) हिस्स “1935 का अधिनियम” है, जिसे अँग्रेजों ने एक “उपनिवेश” पर शासन-प्रशासन करने के लिए बनाया था, न कि एक “स्वतंत्र” देश पर। इस लिहाज से, संविधान को तो ऐसे भी बदलने की जरुरत है।  
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घटना- शनिवार 22 दिसम्बर को ‘इण्डिया गेट’ पर प्रदर्शन कर रहे युवा, जिनमें लड़कियों की बड़ी तादात होती है- किंग्स रोड पर आगे बढ़ते हुए वायसराय हाउस की ओर बढ़ने की कोशिश करते हैं। वायसराय महोदय अगर चाह्ते, तो उन्हें वायसराय भवन तक आने दे सकते थे, उनसे ज्ञापन ले सकते थे, दुःख के दो शब्द बोल सकते थे, मगर वे ऐसा नहीं करते हैं। प्रतिनिधिमण्डल तक को नहीं बुलाते हैं। उल्टे इन युवाओं पर पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की जाती है।
निष्कर्ष- समय आ गया है कि हम दिल्ली में वायसराय तथा राज्यों में लाट साहबों के पदों को समाप्त करने पर विचार करें, चाहे इसके लिए “कॉमनवेल्थ” (राष्ट्रमण्डल) की सदस्यता का परित्याग ही क्यों न करना पड़े! ये दिखावे वाले बेकार पद हैं और इन्हें कायम रखने में प्रतिमिनट देश का करोड़ों रुपया खर्च होता होगा।
नोट- राष्ट्रमण्डल, यानि कॉमनवेल्थ की सदस्यता का अर्थ यह हुआ कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक डोमिनियन स्टेट है- आधा स्वतंत्र, और तकनीकी रुप से यहाँ के राष्ट्रपति यानि वायसराय ब्रिटिश राजमुकुट का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस लिहाज से, राष्ट्रमण्डल से तो ऐसे भी भारत को त्यागपत्र देना चाहिए और सत्ता-हस्तांतरण की शर्तों को मानने से इन्कार कर देना चाहिए। अगर राष्ट्रपति और राज्यपालों का पद जरुरी हुआ, तो भारतीय ढंग के, कम खर्चीले, बिना आडम्बर वाले ऐसे पद बनाये जा सकते हैं।
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