इस 'ग्रीष्मप्रधान' देश में भी
बारहों महीने 'टाई' पहनने के लिए अभिशप्त जो लोग देश के लिए नीतियाँ बनाते हैं (या
नीतियाँ बनाने के लिए नेताओं को सलाह देते हैं), वे अपनी अक्ल इस्तेमाल करने के बजाय नकल करना पसन्द करते हैं; वे बस यह देखते हैं कि अमेरिका ने फलां नीति अपनायी, चीन में ढिकां नीति
अपनायी गयी, इसलिए हमें भी फलां और ढिकां नीति अपनानी चाहिए। ताजा मिसाल
बाँग्लादेश में अपनायी गयी "माइक्रोफाइनान्स" नीति है। भारत सरकार
गरीबों को छोटे ऋण दिये जाने पर जोर दे रही है। बाँग्लादेश में ऐसा करके मोहम्मद
युनूस को नोबल पुरस्कार तक हासिल हो चुका है। हालाँकि बाद में उनकी 'असलियत' भी
जगजाहिर हो गयी थी- वहाँ इस नीति से गरीबों का कोई भला नहीं हुआ, हाँ गरीबों का ब्याज खाकर कोई और ज्यादा अमीर हो गया। मगर इससे क्या? हमें अपना दिमाग थोड़े लगाना है! बाँग्लादेश में
ऐसा किया गया, इसलिए हमें यह नीति अपनानी चाहिए- बात खत्म!
आज डॉ. भरत
झुनझुनवाला ने अपने आलेख में इस नीति की असलियत सामने रखी है। वे बाँग्लादेशी
अर्थशास्त्री फारुख चौधरी के हवाले से लिखते हैं- "श्री चौधरी के अनुसार,
माइक्रोफाइनेन्स के दो उद्देश्य हैं- 1. गरीब को लगे कि उसका उद्धार हो रहा है, और
2. वास्तव में उसकी आय को चूसकर उसे गरीब बनाये रखा जाय।"
सच यह है कि जैसे
हवा बड़ी आग (जंगल की आग) को भड़काती है, जबकि छोटी आग (दीया) को बुझा देती है, ठीक
उसी प्रकार आज बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण अमीरों को फायदा पहुँचाते हैं (किंगफिशर वाले माल्या), जबकि गरीबों को बर्बाद करते हैं (आत्महत्या करते किसान)।
डॉ. झुनझुनवाला के
शब्द:
"माइक्रोफाइनान्स
की विशेषता यह है कि ब्याज के माध्यम से चूसी जा रही रकम को अदा करने में ऋणी को
कष्ट महसूस नहीं होता है, जैसे जोंक द्वारा खून चूसे जाते समय राही को आभास नहीं
होता है। बल्कि ऋणी आभार प्रकट करता है कि उसे ऋण देकर अनुगृहीत किया गया। ठीक उसी
प्रकार, जैसे, अफीमची को अफीम दिये जाने पर वह आभार प्रकट करता है अथवा जैसे, खेत
मजदूर अपने को बन्धुआ बना लेता है, साथ ही ऋण देने वाले साहूकार का धन्यवाद भी
करता है।"
***
मैं कई बार यह कहा
है कि बड़े लोग जो अखबारों में देश की विभिन्न समस्याओं पर लिखते हैं, वे "टू
द प्वाइण्ट" समाधान शायद ही कभी सुझाते हैं- बस कुछ "चाहिए" वाली
पंक्तियाँ लिखकर अपने लेख का समापन कर देते हैं। डॉ. झुनझुनवाला ने भी अपने उक्त
आलेख में यही किया है। हालाँकि इसे भी मैं ठीक ही मानता हूँ- बुद्धिजीवियों का काम
होता है, समस्या की विवेचना करके सामने रख देना; उसका समाधान निकालना एक
"स्टेट्समैन", "राष्ट्रनायक" का काम होता है। एक राष्ट्रनायक
की कल्पनाशक्ति बहुत ही उर्वर होती है, हाँ, उसके मनसूबे धरातल पर होने चाहिए, हवा
में नहीं।
मैंने देश से
गरीबी दूर करने के लिए जिन बातों का जिक्र अपने "घोषणापत्र" में किया
है, उसमें प्रमुख बात तो खेती योग्य जमीन का पुनर्वितरण है (जिक्र बाद में), मगर
उसमें माइक्रोफाइनेन्स-जैसी अवधारणा भी ('रष्ट्रीय बैंक' के गठन के रुप में) मौजूद
है:
8.18 राष्ट्रीय
सरकार एक राष्ट्रीय बैंक का गठन करेगी, जिसकी विशेषताएँ निम्नलिखित
होंगी-
क) यह मुनाफे के स्थान पर देश के सामाजार्थिक उत्थान को प्राथमिकता
देगी।
ख) इसकी छोटी शाखाएँ प्रत्येक पँचायत और वार्ड में; मँझली शाखाएँ प्रखण्ड, नगर और उपमहानगर में, और बड़ी शाखाएँ जिला और महानगर में होंगी। (अध्याय 14 द्रष्टव्य)
ग) इसके अलावे राज्य, अँचल और राष्ट्रीय स्तर की भी
इसकी कुछ शाखायें होंगी, जो क्रमशः राज्य, अँचल तथा राष्ट्रीय प्रशासनिक कार्यालयों/मुख्यालयों के साथ सतत्
सम्पर्क में रहेंगी।
घ) यहाँ जमा राशि पर निम्न वार्षिक दर से ब्याज दिया जायेगा: 1 हजार
रु. से कम पर 15 प्रतिशत, 10 हजार रु. से कम पर 12
प्रतिशत, 1 लाख रु. से कम पर 9 प्रतिशत, 10 लाख
रु. से कम पर 6 प्रतिशत।
ङ) 10 लाख रु. तथा इससे ज्यादा की जमा राशि पर कोई ब्याज नहीं दिया
जायेगा, जबकि 1 करोड़ रु. से अधिक की जमा राशि पर ब्याज देने के बजाय- ‘सम्पत्ति कर’ के रुप में- ब्याज लिया
जायेगा।
(जाहिर है, 10 लाख से ज्यादा की राशि लोग
‘राष्ट्रीय बैंक’ की बजाय अन्यान्य बैंकों में
जमा करेंगे; ऐसे में, सम्पत्ति-कर वसूलने की
जिम्मेवारी सम्बन्धित बैंकों पर डाल दी जायेगी।)
च) यहाँ से निम्न वार्षिक ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराये जायेंगे- 10
हजार रु. से कम राशि पर 1 प्रतिशत (छोटी शाखाओं द्वारा), 1 लाख रु. से कम राशि पर 3 प्रतिशत (मँझली शाखाओं द्वारा), 10 रु. लाख से कम राशि पर 6 प्रतिशत (बड़ी शाखाओं द्वारा), 1 करोड़ रु. से कम राशि पर 9 प्रतिशत (राज्य शाखाओं द्वारा), 10 करोड़ रु. से कम राशि पर 12 प्रतिशत (अँचल शाखाओं द्वारा) और
इससे बड़ी राशि पर 15 प्रतिशत (राष्ट्रीय शाखाओं द्वारा)।
छ) इसी अनुपात में शाखाओं में लेन-देन भी होगा; अर्थात्- एक ग्राहक एक दिन में छोटी शाखा में अधिकतम 10 हजार रु.
तक का लेन-देन कर सकेगा, मँझली शाखाओं में 1 लाख रु.
तक का, बड़ी शाखाओं में 10 लाख रु. तक का, राज्य
शाखाओं में 1 करोड़ रु. तक का, अँचल शाखाओं में 10 करोड़ रु.
तक का और राष्ट्रीय शाखाओं में 10 करोड़ रु. से अधिक का।
ज) 1 हजार रुपये तक के ऋण पर कोई ब्याज नहीं लिया जायेगा; यानि, ग्राहक
अपने खाते से जाने-अनजाने में "शून्य" राशि के बाद भी 1000 रुपये तक की
राशि ज्यादा निकाल कर बाद में वापस जमा कर सकेंगे, जिसपर कोई शुल्क नहीं लगेगा।
झ) इस बैंक में अलग से ‘खाता संख्या’ नहीं दी जायेगी, बल्कि ‘नागरिक पहचानपत्र’ (अध्याय: 44) की संख्या को ही खाता संख्या माना जायेगा।
अध्याय-4 में मैंने जिक्र किया है:
4.12 व्यवसाय करने को इच्छुक युवा क्रमांक
8.10 में वर्णित ‘राष्ट्रीय बैंक’ से ऋण लेकर आसानी से व्यवसाय शुरु कर
सकेंगे।
4.13 सफल
व्यवसायियों/उद्यमियों की मदद से एक परामर्श समिति बनायी जायेगी, जहाँ से नये व्यवसायी तथा उद्यमियों को जरुरी मार्गदर्शन दिया जायेगा।
कुछ महत्वपूर्ण बातों का जिक्र मैंने अध्याय-11 में किया है:
11.2 जिन सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादान लघु एवं
कुटीर उद्योगों में सम्भव है, उनका मध्यम एवं वृहत् उद्योगों द्वारा
उत्पादन/निर्माण बन्द कर दिया जायेगा।
11.3 वृहत् तथा मध्यम दर्जे के नये उद्यम (सरकारी या
निजी) उन्हीं क्षेत्रों में स्थापित किये जायेंगे, जहाँ उद्योग-धन्धे नहीं हैं, या कम हैं।
इन सभी बातों पर अगर 'समग्रता' से विचार
किया जाय, तो हम पायेंगे कि इनसे गरीबी को दूर किया जा सकता है। हालाँकि मैं इस अवधारणा का समर्थक हूँ कि "ग्रामीण
गरीबी का मुख्य कारण खेती योग्य जमीन का असमान बँटवारा है।" यह एक ऐसा
संवेदनशील मसला है कि न्यायपालिका भी बड़े किसानों के पक्ष में खड़ी हो जाती है। मैं
कोई "कठोर साम्यवादी या समाजवादी" व्यवस्था की वकालत नहीं करता, मगर
बिना किसी को ज्यादा नाराज किये जमीन का पुनर्वितरण को जरूरी मानता हूँ:
10.5 नये सिरे से और नये ढंग से समस्त कृषि भूमि की
नाप-जोख, चकबन्दी,
वर्गीकरण तथा पुनर्वितरण किया जायेगा। (जिन
विन्दुओं पर अक्षांश-देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को काटती हैं, कृत्रिम उपग्रहों की सहायता से वह जगह निर्धारित कर वहाँ 21 फीट ऊँचे अशोक
स्तम्भ स्थापित किये जायेंगे; इसी प्रकार, ऐसे दो स्तम्भों के बीच 11 फीट ऊँचे, फिर इनके बीच 7
फीट और फिर उनके बीच 5 फीट ऊँचे अशोक स्तम्भ स्थापित करके कृषि भूमि के चौकोर
टुकड़े बनाये जायेंगे। फिर नाप-जोख इन स्तम्भों से की
जायेगी।)
10.6 पुनर्वितरण के दौरान छ्ह एकड़ तथा इससे अधिक
जमीन रखने वाले न्यासों, परिवारों,
व्यक्तियों से उनकी कुल जमीन का छठा भाग (लगभग 16.6 प्रतिशत भाग) ले
लिया जायेगा, जिसे बाद में भूमिहीन एवं सीमान्त किसानों,
खेतिहर मजदूरों और दस्तकारों के बीच बाँटा जायेगा।
10.7 अनाजों की सरकारी खरीद के मामले में राष्ट्रीय
सरकार (केन्द्र सरकार) की ओर से प्रत्येक किसान परिवार से अधिकतम पाँच एकड़ जोत की
उपज खरीदने की गारण्टी दी जायेगी। (इससे आगे खरीद की गारण्टी राज्य सरकारें दे
सकती हैं।)
***
मजदूरों के लिए आज 'मनरेगा' नाम से एक
(तथाकथित) महान कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसकी तारीफ संयुक्त राष्ट्र संघ में
विपक्ष के नेता आडवाणी जी भी कर चुके हैं। थोड़ा-सा समय और बीतने दीजिये, पता चल
जायेगा कि मनरेगा के नाम पर जो पैसे खर्च हुए हैं, उसका लगभग 90 प्रतिशत अंश बर्बाद
हो गया है! इसके मुकाबले मैंने मजदूरों के लिए जो योजना बनायी है, वह इस प्रकार
है-
4.6 देश के समस्त कुशल/अकुशल मजदूरों तथा छोटे
किसानों/खेतिहर मजदूरों/दस्तकारों का पंजीकरण कर उन्हें ‘विश्वकर्मा सेना’ के रुप में संगठित किया जायेगा।
4.7 इस सेना के अन्दर पुल-निर्माण, सड़क-निर्माण, रेल-निर्माण, भवन-निर्माण- जैसे अलग-अलग डिविजन
होंगे, और जनता के पैसों से होने वाला कोई भी निर्माण कार्य
इस सेना के माध्यम से ही कराया जायेगा। (जाहिर है,‘ठीकेदारी प्रथा’ समाप्त हो जायेगी।)
4.8 इस सेना में दैनिक या साप्ताहिक वेतन दिया
जायेगा, जिसमें ‘छ्ह’ दिनों के कार्य के बदले ‘सात’ दिनों का वेतन, तथा घर से दूर कार्यस्थल होने पर भत्ता दिया जायेगा। (एटीएम मशीनों के माध्यम से छोटे मूल्यवर्ग के‘करेन्सी’ नोट इन्हें वेतन के रुप में
दिये जायेंगे।)
4.9 कुशल/अकुशल मजदूरों को वर्ष में चार महीने की
तथा सीमान्त किसानों/खेतिहर मजदूरों/दस्तकारों को वर्ष में छह महीने की छुट्टी दी
जायेगी- छुट्टियों के दौरान वे आधे वेतन के हकदार होंगे, जो उन्हें छुट्टियों पर जाते
समय एकमुश्त राशि के रुप में दे दी जायेगी।
4.10 इस सेना में प्रत्येक तीन कार्य दिवस के बदले एक
दिन का ‘बोनस’ श्रमिकों के खाते में जमा
होगा- इस बोनस राशि को वे त्यौहारों से पहले ले सकेंगे।
4.11 इस सेना में पंजीकृत किसानों/मजदूरों/दस्तकारों
और अन्यान्य कर्मचारियों/अधिकारियों/इंजीनियरों के लिये आठ वर्ष में एक बार तीन
महीने का सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य होगा. (अर्थात्, यह विश्व की सबसे बड़ी ‘आरक्षित सेना’होगी।)
युवाओं के सरकारी नौकरियों की कमी नहीं
रहेगी-
4.1 इस घोषणापत्र में आगे कई ऐसी
योजनाओं, परियोजनाओं तथा निर्माण कार्यों
(जैसे, प्रत्येक सौ की आबादी पर एक-एक शिक्षाकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी तथा सुरक्षाकर्मी की नियुक्ति करना; सभी
नदियों को जोड़ते हुए भूमिगत नहरों का जाल बिछाना; नागरिकों
के पहचानपत्र के ब्यौरों को अखिल भारतीय डाटाबेस में सुरक्षित रखना, इत्यादि) का जिक्र किया गया है, जिसके लिये
लाखों-करोड़ों की संख्या में अशिक्षित, अल्पशिक्षित, शिक्षित, उच्चशिक्षित और किसी विशेष क्षेत्र में
शिक्षित/प्रशिक्षित युवाओं की जरुरत पड़ेगी।
महिला
सशक्तिकरण के लिए कोई योजना आज चल रही है, ऐसा लगता तो नहीं है। मेरे पास इसके लिए
भी एक योजना है-
24 जनसंख्या नियंत्रण सह महिला सशक्तिकरण
24.1 जनसंख्या वृद्धि के लिये जो सामाजिक तबके और
भौगोलिक क्षेत्र मुख्य रुप से जिम्मेवार हैं, उन तबकों तथा क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए
बिना किसी शैक्षणिक योग्यता के बन्धन के 16 से 20 वर्ष तक की अविवाहित महिलाओं को
भर्ती करते हुए एक सम्पूर्ण महिला सैन्य टुकड़ी का गठन किया जायेगा।(इसे 'शक्ति सेना' कह सकते हैं।)
24.2 इस सैन्य टुकड़ी में महिलाओं को 28 वर्ष की उम्र
में नौकरी छोड़ने की विशेष छूट होगी, ताकि वे विवाह कर सामान्य गृहस्थ जीवन बिता सकें। (नौकरी न छोड़ने वाली महिलाओं को भी 28 वर्ष की उम्र के बाद ही विवाह की
अनुमति दी जायेगी।)
24.3 नौकरी छोड़ते समय जितने वर्षों की सेवा किसी
महिला ने की होगी, उतने
ही वर्षों का अतिरिक्त वेतन उन्हें एकमुश्त धनराशी के रुप में दिया जायेगा।
24.4 इस सैन्य टुकड़ी के जिम्मे सेना के वे काम होंगे, जिन्हें सीमा से दूर रहकर भी
अंजाम दिया जा सकता है (जैसे- सेना डाकघर)।
24.5 यहाँ महिला सैनिकों के लिये सामान्य
शिक्षा-दीक्षा की भी व्यवस्था होगी।
24.6 अन्यान्य सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं को 28
वर्ष की उम्र में नौकरी छोड़ने, एकमुश्त धनराशी (जितने वर्षों की सेवा उन्होंने की है, उतने ही वर्षों के वेतन के बराबर) प्राप्त करने की छूट होगी; साथ ही, नौकरी न छोड़ने की दशा में विवाह करने की
अनुमति उन्हें 28 की उम्र के बाद ही प्रदान की जायेगी।
24.7 'शक्ति सेना' या असैनिक (नागरिक) सेवा की जो महिला 28 की उम्र से पहले विवाह कर लेती है,
उन्हें भी 28 वर्ष की उम्र में नौकरी छोड़ते समय एकमुश्त धनराशि का
लाभ दिया जायेगा- बशर्ते कि वे तब तक माँ नहीं बनी हों।
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें