शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

104. चीन



       खतरे को देखकर शुतुर्मुर्ग द्वारा रेत में मुँह छुपाने या बिल्ली को आते देख कबूतर द्वारा आँखें बन्द कर लेने के जो मुहावरे हैं, वे चीन से सम्बन्धित हमारी नीतियों में साफ झलकते हैं। दो-एक रोज पहले टीवी पर एक समाचार चैनल एक विशेष कार्यक्रम दिखा रहा था- भारतीय सेना का एक "माउण्टेन डिविजन" बनने जा रहा है... चीन से मुकाबला करने के लिए... अब चीन की खैर नहीं... कुछ ऐसा ही कार्यक्रम था। मैंने कुछ सेकेण्ड ही देखा और समझ गया कि अगर सरकार ने ऐसी कोई योजना बनायी भी है, तो वह हवा-हवाई है, क्योंकि चैनल वाले के पास "दिखाने" के लिए कुछ नहीं था, वह "विडियो ग्राफिक्स" दिखा रहा था- विडियो गेम की तरह।
       पहले चीन ने उत्तर में तिब्बत में सैन्य अड्डा बनाया, फिर दक्षिण में श्रीलंका (हम्बनटोटा) में, फिर पूरब में बाँग्लादेश (चटगाँव) में और अब पश्चिम में पाकिस्तान (ग्वादर) में- इस प्रकार उसने भारत को चारों तरफ से घेर लिया। इनके अलावे बर्मा और मालदीव में भी चीन सैन्य अड्डे बना चुका है। चीन का यह कार्यक्रम कई दशकों से चल रहा है और खुले-आम चल रहा है। भारतीय सीमाओं में चीन सैकड़ों बार घुसपैठ कर चुका है- ये खबरें भी छपती रहती हैं। चीन किलोमीटर में नहीं, बल्कि 'ईंच दर ईंच' भारतीय जमीन को हड़प रहा है- यह जुमला तो मुहावरा बन चुका है! मगर चूँकि हमने रेत में सर गाड़ रखा था और आँखें बन्द कर रखी थी, इसलिए हमें कुछ दिखायी-सुनायी नहीं दे रहा था। अभी ग्वादर बन्दरगाह के घोषित अधिग्रहण के बाद हमने एक छोटे-से माउण्टेन डिविजन के गठन का आदेश दे दिया, यही क्या कम है?
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       चीन की दो कमजोर नस है- एक, जनता की शक्ति और दो, आध्यात्मिक शक्ति। इन दोनों शक्तियों से चीन के सत्ताधारी घबराते हैं। कूटनीति यही कहती है कि भारत को चीन के अन्दर-बाहर इन दोनों शक्तियों से हाथ मिलाकर रखना चाहिए- एक तरफ वह चीनी युवाओं का दिल जीतने की कोशिश करे और दूसरी तरफ तिब्बती युवाओं का।
       चीनी युवाओं के लिए चीनी भाषा में रेडियो तथा नेट पर रोचक कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं और तिब्बती युवाओं को इण्डो-तिबेतन बॉर्डर फोर्स में 60 प्रतिशत तक स्थान आरक्षित किये जा सकते हैं।
       कुछ प्रतिरोधक कार्य भी किये जाने चाहिए।
1.     तिब्बतियों को सिर्फ धर्मशाला या हिमाचल तक सीमित न रखकर उन्हें अरूणाचल तक सीमा के साथ-साथ बसाना चाहिए;
2.     पूर्वोत्तर के राज्यों की भाषाओं में रेडियो पर बेहतर कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए, ताकि लोग चीनी प्रसारण को सुनना बन्द कर दें;
3.     आयात-निर्यात में सन्तुलन की स्थिति लायी जाय और भारत को चीनी उत्पादों का डम्पिंग यार्ड न बनने दिया जाय;
4.     रक्षा-विशेषज्ञों की सलाह मानकर सैन्य तैयारियाँ की जाय;
5.     जरुरत पड़ने पर चीन को धमका भी दिया जाय।
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कुछ दिनों पहले टीवी पर चीन पर बहस के दौरान एक रक्षा विशेषज्ञ ने खुलकर कहा था- देखिये साहब, अब तो लगता है कि वह दिन भी आने वाला है, जब सीमाओं के रक्षक अपने हथियार एण्टनी साहब को सौंप देंगे और कहेंगे- कर लीजिये अपनी सीमाओं की रक्षा... 

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