शुक्रवार, 8 जून 2012

“शासकों व शासितों के बीच परस्पर बढ़ता अविश्वास”


25/2/2012

कल के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में जो सबसे मार्के वाली टिप्पणी मुझे नजर आयी, वह है- “शासकों व शासितों के बीच परस्पर अविश्वास बढ़ता जा रहा है।”
कायदे से, इस टिप्पणी पर राजनेताओं के कान खड़े हो जाने चाहिए थे और उन्हें आत्ममन्थन शुरु कर देना चाहिए था। मगर ऐसा नहीं हुआ। सत्ता पक्ष के राजनेता स्वामी रामदेव को बुरा-भला कहते नजर आये, तो विपक्षी राजनेता गृहमंत्री पर निशाना साधते नजर आये।
फिलहाल विपक्ष को छोड़ा जा रहा है, क्योंकि उक्त अविश्वास को पैदा करने / बढ़ाने में वर्तमान शासकों का हाथ है। मगर मैं कन्फ्यूज हूँ कि आज की तारीख में हमारा “शासक” है कौन? अतः बारी-बारी से मैं सभी विकल्पों पर विचार करूँगा कि उन्होंने इस टिप्पणी को किस रुप में लिया होगा।
1. श्रीमती सोनिया गाँधी- इन तक वही / उतनी ही जानकारियाँ पहुँचती होंगी, जो / जितनी इनके सलाहकार इन तक पहुँचाते होंगे। अतः मान लिया जाय कि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी कोई टिप्पणी की है- यह जानकारी उनतक पहुँची ही नहीं होगी। सो प्रतिक्रिया का प्रश्न ही नहीं उठता।
2. राहुल गाँधी- ये दिग्विजय सिंह (जिहें इस देश की जनता सबसे ज्यादा नापसन्द करती है) के शागिर्द बनकर “सी-ग्रेड” की राजनीति सीखने में व्यस्त हैं- देश-दुनिया से इन्हें कोई मतलब नहीं है। इनका समय सिर्फ इन आँकड़ों को खंगालने में बीतता होगा कि उ.प्र. के किस प्रखण्ड / पंचायत में किस जाति के कितने मतदाता रहते हैं! उक्त टिप्पणी को एक कान से सुनकर इन्होंने दूसरे से निकाल दिया होगा। कोई व्यक्ति जब देश-दुनिया के महत्वपूर्ण विषयों पर सोच-विचार करता है, तो यह सोच, यह विचार उनके जुबान पर आ ही जाता है- जाने या अनजाने में। राहुल गाँधी की जुबान से ऐसी कोई बात कभी सुनी नहीं गयी है।
3. सिब्बल-मुखर्जी-खुर्शीद- इनके तथा कुछ और मंत्रियों के दिलो-दिमाग में “सत्ता का दम्भ” भर गया है। उक्त टिप्पणी पर इन लोगों ने जोर का अट्टहास लगाया होगा और बोला होगा- “ये स्सा…. इण्डियन! हजार वर्षों तक गुलाम रहे हैं और आगे भी हजार वर्षों तक हमारी जूतियों के नीचे ही रहेंगे! हमपर अविश्वास करके क्या उखाड़ लेंगे ये हमारा?”
4. डॉ. मनमोहन सिंह- (तकनीकी रुप से ये ही हमारे शासक हैं, भले इनके हाव-भाव से ऐसा लगता न हो।) कल रात सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी ने इनकी अन्तरात्मा को झकझोरा होगा। गुरु गोविन्द सिंह की तस्वीर में गुरु की निगाहें इन्हें बेधती हुई नजर आयी होंगी। मगर जल्दी ही “सोनिया-राहुल” का जाप करते हुए इन्होंने अपनी अन्तरात्मा की आवाज को दबा दिया होगा और गुरुओं की तस्वीर से नजरें हटा ली होंगी।
साथियों, जरा सोचिये, शासकों व शासितों के बीच परस्पर बढ़ते अविश्वास की बात- वह भी सर्वोच्च न्यायालय के मुख से- कितना मार्मिक है! …और यह अविश्वास हमारे देश को किस स्थिति में ले जा सकता है…

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