शुक्रवार, 8 जून 2012

'समलैंगिकता' पर बहस!?


22/3/2012

      कभी-कभी लगता है, ज्यादा पढ़ा-लिखा होना भी बेकार है। मामूली बातों को विद्वान एवं बुद्धीजीविगण उलझा देते हैं और उस पर शास्त्रार्थ करने लगते हैं!
      ताजा मिसाल 'समलैंगिकता' का है। पिछले लम्बे समय से सुना जा रहा है कि हमारी न्यायपालिका इस विषय पर किसी तरह की सुनवाई कर रही है। सरकार ने इस पर अपना पक्ष भी न्यायालय में रखा था, और शायद अपने रुख से एकबार पलट भी गयी थी। कल टी.वी. पर देखा कि अब सरकार ने न्यायालय को बताया कि उसकी नजर में यह "अपराध" नहीं है।
      अब दो बालिग अगर आपसी सहमति से शारीरिक सम्बन्ध कायम करते हैं, तो इसे "अनैतिक" कहा जा सकता है; मामला अगर समलिंगियों का हो, तो "अप्राकृतिक" भी कहा जा सकता है, पर ऐसा सम्बन्ध रखने वाले को जेल भेज देना उचित नहीं हो सकता; यानि इसे "अपराध" नहीं ठहराया जा सकता। दूसरी बात, यह "निजी" किस्म का मामला है, "सार्वजनिक" नहीं। तीसरी बात, हमारे देश के लिए यह एक बहुत ही "गौण" मामला है, "महत्वपूर्ण" नहीं। मगर देखिये कि हमारी न्यायपालिका तथा सरकार ने अपना कितना "कीमती" समय इस मुद्दे पर खर्च कर दिया! नतीजा क्या निकला? वही, जिसे "सामान्य बुद्धि"- "कॉमन सेन्स" के आधार पर निकाला जा सकता था- कि यह अपराध नहीं है!
      ***
      समस्या क्या है, पता है? हम भारत को येन-केन-प्रकारेण "अमेरिका" बनाना चाहते हैं! (कुछ बुद्धिजीवि "चीन", तो कुछ "जापान" भी बनाना चाहते हैं; मगर भारत को "भारत" बनाने की बात शायद ही कोई "बुद्धिजीवि" करता है!) अमेरिका के "युवा" राष्ट्रपतिगण चूँकि 'समलैंगिकता' पर अपना रुख स्पष्ट करते हैं, इसलिए हमारे "बूढ़े" प्रधानमंत्रियों को भी ऐसे चटपटे विषय पर रुख स्पष्ट करना चाहिए। अमेरिका में चूँकि एक बच्चा घर से बन्दूक लाकर अपने सहपाठियों एवं शिक्षकों को भून देता है, इसलिए भारत में भी ऐसा होना चाहिए! अमेरिका में वेश्यावृत्ति पर प्रतिबन्ध नहीं है, या वहाँ "उन्मुक्त सेक्स" है, तो यहाँ भी होना चाहिए! ...कुछ इसी प्रकार से हम भारत को अमेरिका बनाना चाहते हैं।
कहते हैं कि अमेरिकी "बैठते" या "चलते" नहीं हैं, बल्कि "खड़े रहते" और "दौड़ते" हैं- इस गुण को अपनाने से हम साफ इन्कार कर देंगे! और भी बहुत-सी बाते हैं- लोग पंक्तिबद्ध होकर काम निपटाते हैं, अदालतों में आरोपित अपना दोष स्वीकार कर लेते हैं, भ्रष्टाचार-घूँसखोरी नहीं के बराबर है- इन्हें तो हम भूलकर भी न अपनायें!
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आजादी हासिल करने के साठ साल बाद भी जिस देश की जनता अशिक्षित है, कुपोषित है, बेरोजगार है, जहाँ की व्यवस्था में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार-घूँसखोरी का दीमक लगा है, जहाँ हर पखवाड़े एक नये घोटाले से पर्दा उठता है, सबसे शर्मनाक बात- जहाँ "भूख से लोग मरते" हैं, उस देश की न्यायपालिका और सरकार (जो जनता के पैसों से चलती है) "समलैंगिकता" पर गहन विचार-मन्थन कर रही है....
....पता नहीं, इनके पास चुल्लू भर पानी भी है या नहीं! 

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