7/6/2012
आजादी (ईमानदारी से कहा जाय, तो सत्ता-हस्तांतरण) के इतने वर्षों
के बाद आज देश को जिस मुकाम पर होना चाहिए, वहाँ यह नहीं पहुँच पाया; जबकि प्राकृतिक संसाधनों से लेकर प्रतिभाशाली एवं
मेहनती मानव-शक्ति तक, हर चीज यहाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी और आज भी है!
विश्लेषण
करेंगे, तो इसके बहुत-से कारण निकलकर सामने आयेंगे- अक्षम राजनीतिक नेतृत्व से
लेकर नागरिकों की लापरवाह मानसिकता तक।
मगर आज
यहाँ मैं कोई तार्किक विश्लेषण न करके इस समस्या को एक "दकियानूसी"
नजरिये से देखने की अनुमति चाहूँगा।
देश को
दिशा-निर्देश कहाँ से मिलता है? संसद-भवन से। संसद-भवन का आकार कैसा है? वृताकार।
वृताकार बोले तो "शून्य" का आकार! "शून्य" के आकार वाले भवन
में बैठकर अगर देश के कर्णधार लोग देश के लिए दिशा-निर्देश जारी करें, तो इनका
क्या, कितना एवं कैसा असर देश पर होगा, इसका अन्दाजा कोई भी 'दकियानूस' लगा सकता
है।
मेरी "दकियानूसी" सलाह यह होगी कि
संसद-भवन के चारों तरफ- पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर चार सीधे
गलियारे बनवा दिये जायें। ये गलियारे आगे जाकर अपनी-अपनी दाहिनी ओर मुड़ जायेंगे-
नब्बे डिग्री पर। थोड़ा-सा आगे बढ़कर ये मुड़े हुए गलियारे फिर अपनी-अपनी बायीं ओर
मुड़ जायें- पैंतालीस डिग्री पर। गलियारों के इन अन्तिम भागों की दिशायें होंगी-
ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य कोण की तरफ।
बेशक इन
गलियारों के आकार-प्रकार, सजावट इत्यादि मूल भवन के अनुपात में होने चाहिए।
अब हमारे
संसद-भवन का आकार क्या बनेगा? तो "स्वस्तिक" का! "स्वस्तिक",
जो कि प्रतीक है सुख-शान्ति-समृद्धि का- एक शब्द में बोलें तो-
"खुशहाली" का।
क्या पता,
इस "टोटके" को आजमाने के बाद चमत्कारिक रुप से देश में कुछ बदलाव आ ही
जाये? न भी आये, तो हर्ज क्या है? कौन-सा नुकसान होने जा रहा है? क्या हम अपने
जीवन में कभी "टोटके" नहीं आजमाते?
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