शुक्रवार, 8 जून 2012

एक आदर्श "राज्यसभा" की अवधारणा


27/4/2012

एक महान क्रिकेटर तथा एक महान अभिनेत्री को राज्यसभा की सदस्यता प्रदान करने की कवायद चल रही है। बेशक, दोनों अपने-अपने क्षेत्र के अच्छे फनकार हैं, मगर सांसद बन कर ये दोनों देश के लिए नीति-निर्धारण में कोई योगदान दे पायेंगे, या देश/समाज के प्रति इनका कोई स्पष्ट दृष्टिकोण है- ऐसा तो मुझे नहीं लगता।
वैसे भी, जब से चुनाव हारे हुए राजनेताओं को राज्यसभा में पहुँचाने (ताकि उनकी "लालबत्ती" बनी रहे) तथा कुछ खास लोगों को "उपकृत" करते हुए राज्यसभा की सदस्यता प्रदान की परम्परा चल पड़ी है, तब से राज्यसभा अपनी गरिमा खो चुकी है।
मैं अपनी समझ से एक आदर्श राज्यसभा की अवधारणा यहाँ प्रस्तुत करता हूँ कि किन्हें इनकी सदस्यता प्रदान की जानी चाहिए और उनका चयन कैसे होना चाहिए:-
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मेरे अनुसार, देश में 45 राज्य होने चाहिए, प्रत्येक राज्य में 9 जिले होने चाहिए और प्रत्येक जिला एक संसदीय सीट होनी चाहिए! (एक महानगर एक जिले का समतुल्य होगा।) इस हिसाब से लोकसभा-सदस्यों की संख्या बनती है- 405। इसी हिसाब से, राज्यसभा-सदस्यों की भी कुल संख्या 405 ही होनी चाहिए।
405 में से 225 स्थान विधायकों के लिये होने चाहिएप्रत्येक विधानसभा से 5 विधायक चुनकर राज्यसभा में पहुँचेंगे। चूँकि इनका कार्यकाल 3 वर्षों का होता है, अतः प्रतिवर्ष एक-तिहाई अर्थात् 75 सदस्य बदलने चाहिए
81 स्थान दिये जाने चाहिए- सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यवसायिक संघों के प्रतिनिधियों को। (जिनके लिए नीति बने, उनकी ही भागीदारी अगर नीति बनाने में न हो, तो वह नीति बेकार साबित होगी! कोई शक है क्या?) बेशक, इसके लिए देश के सभी सामाजिक, सांस्कृतिक तथा व्यवसायिक संघों को संगठित होकर एक-एक महासंघ (या परिसंघ- फेडेरेशन) बनाना पड़ेगा, ताकि वे राज्यसभा में भेजने के लिए अपने प्रतिनिधियों का चयन कर सकें। जाहिर है, तीनों प्रकार के संगठनों के लिये 27-27 सीट होंगे और प्रतिवर्ष एक-तिहाई अर्थात् 27 सदस्य बदलेंगे
राज्यसभा में 81 स्थान सत्तर वर्ष से अधिक आयु वाले राष्ट्रीय स्तर के अनुभवी एवं सक्रिय राजनेताओं के लिए रखे जाने चाहिए। (जाहिर है- 70 वर्ष से अधिक आयु वाले राजनेताओं के लिए "लोकसभा" में कोई स्थान नहीं होना चाहिए! मगर चूँकि देश को इनके अनुभव की आवश्यकता पड़ती है, अतः इन्हें राज्यसभा में रहना चाहिए।) इन सदस्यों को राष्ट्रपति महोदय द्वारा जीवन भर के मनोनीत किया जा सकता है। और अगर ये बुजुर्ग राजनीतिज्ञ अपना संघ बना लें और खुद अपना प्रतिनिधि चुनें, तो फिर मनोनयन की आवश्यकता नहीं रह जायेगी
राज्यसभा में 18 स्थान दुनियाभर में फैले "भारतवंशियों" के प्रतिनिधियों के लिए होने चाहिए। हालाँकि वे चाहें, तो किसी भारतीय को भी अपना (अप्रत्यक्ष) प्रतिनिधि चुन सकें- ऐसी छूट होनी चाहिए! पता नहीं, इस विन्दु पर किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता! आखिर भारतवंशियों को अपने दिल की बातें भारत के संसद में रखने का अधिकार क्यों न हो?  खैर, भारवंशियों के 9 संघ बनाये जा सकते हैं- 1. यूरोप, 2. उत्तरी अमेरीका, 3. दक्षिणी अमेरीका, 4. अफ्रिका, 5. ऑस्ट्रेलिया, 6. दक्षिण-पूर्वी एवं पूर्वी एशिया, 7. मध्य-पूर्व एवं पश्चिम एशिया, 8. मॉरिशस और 9. अन्य टापू देश प्रत्येक संघ के 2-2 प्रतिनिधि होने चाहिए और 6 सदस्य प्रतिवर्ष बदलने चाहिए
राज्यस्भा की तर्ज पर राज्यों में 81 सदस्यीय विधान परिषद बनाये जा सकते हैं, जिसकी सदस्यता राज्य स्तरीय सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यवसायिक संघों के चुने हुए प्रतिनिधियों तथा बुजुर्ग राजनीतिज्ञों प्रदान की जानी चाहिए
अन्त में- मेरे बहुत-से साथी सोचते होंगे कि मैं हमेशा नक्कारखाने में तूती क्यों बजाता रहता हूँ? दरअसल, मैं इस सिद्धान्त को मानता हूँ कि जब बहुत-से लोग अच्छा "सोचते" हैं, तभी कुछ अच्छा "घटित" होता है! 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें