गुरुवार, 7 जून 2012

सेनाध्यक्ष बनाम सरकार और सर्वोच्च न्यायालय


2 फरवरी 2012 को लिखा गया 

      पता चला कि सरकार ने सेना की एडजुटैण्ट-जेनरल शाखा को सेनाध्यक्ष का जन्मवर्ष "1950" करने को कहा है, ताकि सेनाध्यक्ष को इसी साल मई में अवकाश पर भेजा जा सके
      यह भी पता चला कि आगामी 3 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई होगी।
      अगर सेनाध्यक्ष अपनी बात वापस नहीं लेते, तो सुनवाई हो भी सकती है। (यह एक अभूतपूर्व स्थिति होगी, क्योंकि अपने यहाँ आम तौर पर यही माना जाता है कि सेनाओं में ऊपर के तीन-चार पदों पर किसी के बने रहना-न रहना सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है।)
      खैर, अगर सुनवाई होती है, तो सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर दो नजरिये से विचार कर सकता है:-
      पहला नजरिया- इसे एक सामान्य मामला समझा जाय और 'तमाम सबूतों तथा गवाहों के बयानों के मद्देनजर' वाली शैली में निर्णय दिया जाय। ऐसे में, निर्णय सेनाध्यक्ष के पक्ष में जायेगा; क्योंकि उनके हर प्रमाणपत्र में उनका जन्मवर्ष "1951" दर्ज है और सरकार भी अभी हाल तक इसे ही मानती आ रही थी। तब सरकार की फजीहत होगी; हालाँकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पहले भी बहुत बार सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की फजीहत हो चुकी है।
      दूसरा नजरिया- सर्वोच्च न्यायालय इसे एक 'अ-साधारण' मामला माने और 'सेना पर सरकार का नियंत्रण रहना चाहिए' के सिद्धान्त को मानते हुए निर्णय दे। ऐसे में, फैसला सरकार के पक्ष में जायेगा और सेनाध्यक्ष को अपमान का घूँट पीकर मई'11 में अवकाश लेना पड़ेगा। इसका दूरगामी प्रभाव सारी सेना के "मनोबल" पर पड़ सकता है। (ध्यान रहे, किसी भी सेना के लिए "मनोबल" ही "सबसे बड़ी ताकत" होती है!)
        एक तीसरा नजरिया भी न्यायालय अपना सकता है, जो कि 'बीच के रास्ते' पर आधारित होगा। ऐसे में 'तेरी भी जय और मेरी भी जय' के तहत न्यायालय सेनाध्यक्ष का जन्मवर्ष तो "1951" ही मानेगा; मगर साथ ही, सेनाध्यक्ष को एक साल पहले ही अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले को भी उचित ठहरा देगा।
      कुल-मिलाकर यही लगता है कि हमारा सर्वोच्च न्यायालय एकदम से सेनाध्यक्ष के हक में फैसला नहीं देगा और सेनाध्यक्ष को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से मई'11 में ही अवकाश लेने की सलाह देगा। सरकार "किन कारणों से" सेनाध्यक्ष को साल भर पहले रिटायर करना चाहती है- इसमें न्यायालय शायद ही रूची दिखाये। (सरकार तथा न्यायपालिका दोनों "नागरिक" संस्थायें हैं और शायद दोनों ही न चाहें कि भारत में "सैन्य" संस्थाओं के "पर निकलें"।)
      अगर सेनाध्यक्ष मई'11 में अवकाश पर जाते हैं, तो पत्रकार वार्ता में पूछा जायेगा- जब अवकाश लेना था तो मामले को तूल क्यों दिया गया?
      अगर सेनाध्यक्ष मई'11 में अवकाश पर जाने से मना कर देते हैं, तो यह एक अनोखी स्थिति होगी।
      अब तो खैर, जो होगा, वह फरवरी में ही, या नहीं तो मई तक पता चल ही जायेगा। मुझे तो अपनी ओर से बस यही कहना है कि सेनाध्यक्ष को हर हाल में देश के सर्वोच्च न्यायालय की भावना का सम्मान करना चाहिए।।। और सर्वोच्च न्यायालय की भावना कहती है- "।।।भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए लक्ष्मण रेखा लाँघना कभी-कभी जरूरी हो जाता है।।।"

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