शुक्रवार, 8 जून 2012

नदियों को जोड़ना: एकबार सोच-विचार कर लें...


मार्च 2012 

कुछ दिनों पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से "नदियों को जोड़ने वाली परियोजना" को ठण्डे बस्ते में डाले जाने पर प्रश्न पूछा था। हो सकता है, इस परियोजना पर फिर से काम शुरु हो जाय।
इस परियोजना में 30 विशाल नहरों तथा 40 बाँधों की मदद से देश की नदियों को आपस में जोड़ा जाना है। इसमें कितना समय लगेगा, उस हिसाब से लागत कितनी बढ़ेगी, इसका कितना नफा-नुकसान देश को होगा- ये सब मुद्दे तो अपनी जगह हैं ही, पर यहाँ कुछ ऐसे विन्दुओं का जिक्र किया जा रहा है, जिसपर सबको एकबार विचार करना चाहिए:
1.       खेती योग्य जमीन की एक बहुत बड़ी माप इन नहरों एवं बाँधों की भेंट चढ़ जायेगी।
2.      बाँधों की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं और आज नहीं तो पचास साल के बाद- दुनिया भर में बाँधों को "तोड़ने" तथा नदियों को उनके "स्वाभाविक" रुप में बहने देने की प्रक्रिया शुरु होगी ही!
3.      विशालकाय नहरों के कारण जल का "पृष्ठ क्षेत्रफल" बढ़ेगा, इससे "वाष्पीकरण" ज्यादा होगा और सुदूर भविष्य में इसका असर हमारी "जलवायु" पर पड़ेगा।
मैं अपनी ओर से इस मामले में दो सुझाव प्रस्तुत करना चाहूँगा:
1.      30 नहरों के निर्माण पर जो पैसे खर्च होंगे, उन पैसों का इस्तेमाल कर देश के छोटी-बड़ी नदियों में से "गाद की सफाई" की जाय और उनकी गहराई बढ़ायी जाय। हो सके, तो पक्के "किनारे" बनवाये जायें। इससे एक तो "अन्तर्देशीय नौवहन" को बढ़ावा मिलेगा (नदियों के रास्ते माल ढुलाई सस्ती पड़ती है।); दूसरे, खेती योग्य जमीन बच जायेगी; और तीसरे, इससे "बाढ़" का खतरा घटेगा। (मैं तो बाँधों को तोड़े जाने के भी पक्ष में हूँ!)
2.      40 बाँधों के निर्माण में जो खर्च आयेगा, उससे खेती योग्य जमीन के नीचे पाईप-लाईनों का एक "महाजाल" (दूसरे शब्द में "भूमिगत नहरें") बिछा दिया जाय और इस जाल को सभी छोटी-बड़ी नदियों एवं जलाशयों से जोड़ दिया जाय। इस "जाल" के प्रत्येक आधे किलोमीटर पर (या आवश्यकतानुसार) सिंचाई के विशेष "आउटलेट" बना दिये जायें। यह परियोजना एक तो किसानों को सिंचाई की सुविधा देगी; दूसरे, नगरों-महानगरों को पेय जल मुहैया करायेगी; तीसरे, इससे वर्षा के "मीठे जल" की एक बड़ी मात्रा को खारे समुद्र में मिलने से रोका जा सकेगा; चौथे, इससे बाढ़ व सुखाड़ की समस्या से निपटा जा सकेगा; और पाँचवे, "वाष्पीकरण" बढ़ने का खतरा नहीं रहेगा। 
एक नजर में ये परियोजनायें असम्भव-जैसी लग सकती हैं, मगर यकीन कीजिये, ऐसा किया जा सकता है। 

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